आचार्य श्रीराम शर्मा >> गायत्री का ब्रह्मवर्चस गायत्री का ब्रह्मवर्चसश्रीराम शर्मा आचार्य
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गायत्री और सावित्री उपासना
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आत्मा में सन्निहित ब्रह्मवर्चस का जागरण करने के लिए गायत्री उपासना आवश्यक है। यों सभी के भीतर सत्-तत्त्व बीज रूप में विद्यमान है पर उसका जागरण जिन तपश्चर्याओं द्वारा सम्भव होता है, उनमें गायत्री उपासना ही प्रधान है। हर आस्तिक की अपने में ब्रह्मतेज उत्पन्न करना चाहिए। जिसमें जितना ब्रह्म-तत्त्व अवतरित होगा, वह उतने ही अंशों में ब्राह्मणत्व का अधिकारी होता जायेगा। जिसने आदर्शमय जीवन का व्रत लिया है, व्रतबंध यज्ञोपवीत धारण किया है, वे सभी व्रतधारी अपनी आत्मा में प्रकाश उत्पन करने के लिए गायत्री उपासना निरन्तर करते रहें, यही उचित है। जो इस कर्तव्य से च्युत होकर इधर-उधर भटकते हैं, जड़ को सींचना छोड़कर पत्ते धोते फिरते हैं, उन्हें अभीष्ट लक्ष्य प्राप्त करने में बिलम्ब ही नहीं, असफलता का भी सामना करना पड़ता है।
गायत्री का ब्रह्मवर्चस्
अनुक्रम
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